टॉयलेट ट्रेनिंग

शिशुओं और छोटे बच्चों में टॉयलेट ट्रेनिंग – प्यार, धैर्य और सही तरीके से सिखाएँ

टॉयलेट ट्रेनिंग का मतलब है बच्चे को पेशाब और पॉटी सही जगह, सही समय और सही तरीके से करना सिखाना। यह केवल सफाई की आदत नहीं, बल्कि बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य, आत्मनिर्भरता और सामाजिक व्यवहार का भी हिस्सा है। ग्रामीण और छोटे कस्बों में अक्सर बच्चे खुले में शौच करते हैं या देर से टॉयलेट की आदत सीखते हैं, जिससे संक्रमण, दस्त और त्वचा रोगों का खतरा बढ़ जाता है। अगर सही उम्र और सही तरीके से यह प्रशिक्षण दिया जाए तो बच्चे जल्दी सीखते हैं और बीमारियों से भी बचते हैं।

टॉयलेट ट्रेनिंग कब शुरू करें?

आमतौर पर बच्चे 18 महीने से 2.5 साल की उम्र के बीच इस प्रशिक्षण के लिए तैयार होते हैं। लेकिन हर बच्चा अलग होता है, कुछ जल्दी सीख जाते हैं, कुछ को ज्यादा समय लगता है। जल्दबाज़ी से बच्चों में डर या नकारात्मक भावना आ सकती है, इसलिए धीरे-धीरे और प्यार से शुरुआत करें।

कैसे पहचानें कि बच्चा टॉयलेट ट्रेनिंग के लिए तैयार है?

  1. बच्चा 2–3 घंटे तक सूखा रह सकता है (मतलब पेशाब नहीं किया है)।
  2. पेशाब या पॉटी से पहले इशारा करना, चेहरा बनाना या शब्द कहना।
  3. गंदे कपड़े होने पर असहज महसूस करना।
  4. बड़ों की नकल करना और पॉट्टी चेयर या कमोड में बैठने में रुचि दिखाना।
  5. खुद कपड़े चढ़ाने-उतारने में मदद करने लगना।

टॉयलेट ट्रेनिंग की शुरुआत कैसे करें?

  1. सही पॉट्टी चेयर चुनें, बच्चे की ऊँचाई और आराम के अनुसार, जो साफ करने में आसान हो।
  2. नियमित समय तय करें, जैसे सुबह उठने के बाद, खाने के बाद, और सोने से पहले।
  3. बच्चे को सहज बनाएं, पॉट्टी पर बैठाकर कहानी सुनाएँ, बातें करें ताकि बच्चा डर या घबराहट महसूस न करे।
  4. सकारात्मक प्रोत्साहन दें, सही जगह करने पर बच्चे को शाबाशी, मुस्कान या छोटा इनाम दें।
  5. साफ-सफाई की आदत डालें, हर बार के बाद पानी या साफ कपड़े से धोएँ और साबुन से हाथ धुलवाएँ।

क्या न करें?

  1. कपड़े गंदे होने पर डांटना या मारना नहीं।
  2. मजबूरी में लंबे समय तक ठंडी जगह पर बैठाना नहीं।
  3. एक ही दिन में सब सिखाने की कोशिश नहीं करना।
  4. गंदगी होने पर शर्मिंदा करने वाले शब्द या इशारे नहीं करना।

ग्रामीण और छोटे कस्बों के लिए विशेष सुझाव

  1. खुले में शौच से बचाएँ, यह न केवल गंदगी फैलाता है बल्कि बच्चों को कीड़े, दस्त और टाइफाइड जैसे रोगों का खतरा देता है।
  2. साफ पॉट्टी या टॉयलेट का प्रयोग करवाएँ, अगर घर में टॉयलेट नहीं है तो सामुदायिक टॉयलेट या अस्थायी साफ पॉट्टी का इस्तेमाल करें।
  3. हाथ धोने की आदत डालें, यह संक्रमण रोकने का सबसे आसान और सस्ता तरीका है।
  4. गीले कपड़े तुरंत बदलें, लंबे समय तक गीले कपड़े रहने से त्वचा पर दाने और लालिमा हो सकती है।
  5. सर्दियों में भी नियमित ट्रेनिंग जारी रखें, कपड़े अच्छे से पहनाएँ, लेकिन आदत न टूटे।

टॉयलेट ट्रेनिंग में आने वाली आम चुनौतियाँ और समाधान

  1. बच्चा पॉट्टी चेयर पर बैठने से मना करता है → शुरुआत में 2–3 मिनट के लिए बैठाएँ और धीरे-धीरे समय बढ़ाएँ।
  2. बार-बार कपड़े गंदे करना → यह सामान्य है, धैर्य रखें और डांटने के बजाय बार-बार याद दिलाएँ।
  3. रात में पेशाब करना (Bedwetting) → यह 5–6 साल तक सामान्य हो सकता है, रात में पानी कम दें और सोने से पहले टॉयलेट ले जाएँ।

स्वास्थ्य से जुड़ी बातें

सही टॉयलेट ट्रेनिंग से:

  1. दस्त, पेट के कीड़े और पेशाब के संक्रमण (UTI) कम होते हैं।
  2. बच्चे साफ-सुथरे रहते हैं और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  3. परिवार में कपड़े धोने और सफाई का बोझ कम होता है।

गलत तरीके से या जल्दी में कराई गई ट्रेनिंग से:

  1. बच्चा टॉयलेट से डर सकता है।
  2. कब्ज की समस्या हो सकती है (बच्चा रोकने लगे तो)।
  3. बच्चे और माता-पिता में तनाव बढ़ सकता है।

टॉयलेट ट्रेनिंग एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन सही दृष्टिकोण, धैर्य और प्यार से यह आसान हो जाती है। बच्चे की छोटी-छोटी सफलताओं का जश्न मनाएं और उसे आत्मनिर्भर बनने में मदद करें। याद रखें कि हर बच्चा अलग है और उसकी अपनी गति से सीखेगा।किसी भी संबंधित सलाह के लिए डॉ. वीरेन्द्र वर्मा से मिलें, अल्ट्रस हॉस्पिटल, न्यू रोड, देहरादून में।